सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

सितंबर, 2024 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सब कुछ देखा है मैने अपने आप को बडे होते देखा है ✍🏻✍🏻अनिल हटरिया

  सब कुछ देखा है मैने अपने आप को बडे होते देखा है | सब कुछ देखा है मैने अपने आप को बडे होते देखा है | कभी किराया ना था , तो कभी खुद के कपडे | बडे भाई को घर सभांलते भी देखा है | मेरे ना पढने पर बहन को डालते भी देखा है | गांव से चुडियां बेचकर आई मां की कमाई को गिनते भी देखा है | पापा को  खेत में किराये पर काम करते भी देखा इतना कया में कया  बोलू  गरीबी में लोगों ने मजे लेते भी देखा है | मैने अपने को बडे होते देखा है | रिकशा चलाकर घर के छोटे मोटे काम कर के भी देखा है| शाम को खेतो में किताब लेकर भैसो को चराते भी देखा है | अब कया कहू  में सब मैने अपने दम पर करके देखा  है | कभी कोल्हू का बैल बनकर बाप की डाट से हल चला के भी देखा है | गांव मे रह कर, दस- दस रूपये की आमदनी कर के भी देखा है | तुम कया जानो हमे कितना दर्द अपने दिल पे दे के रखा है |  दीये में तेल कम होने से वजह से मैने सुबह जल्दी उठ के पढना सीखा है | कभी पढाई के लिऐ मां बाप के पैसे को बचा के देखा है ||  तो कभी कभी तो बिना किराये के भी बसो में सफर कर के देखा है |  मैने अपने आप बडे होते देखा है || गलत ना किया कभी गलती को माफ करके भी मै