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दिसंबर, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ना जाने कया बात है - मां के घर मे

 "ना जाने कया बात है  - मां के घर मे " बरसों बीत गए,  उस घर से विदा हुए,  बरसों बीत गए,  नई दुनिया बसाएं हुए , पर ना जाने क्या बात है?  शाम ढलते ही मन , उस घर पहुंच जाता है ! मां की आवाज सुनने को , मन आज भी तरसता है , Shop Now👇👇   महक मां के खाने की,  आज भी दिल भर आती है , शाम होते ही याद आता है, घर में हंसी व शोर का होना ,  पापा का काम से, लौटकर आते ही , चाय का प्याला पीना,  दिनभर का हाल सुनाना , आकर मुझे किताब पढवाना | समझ ना आऐ तो डाट सुनाना | भाई का खेलते कूदते आना , शाम होते याद आता है घर , जहां सदा मेहमानों का था,  लगातार आना जाना| सदा घर पर बडे मेहमान आने पे  कमरे मे छुप जाना | ना जाने वो मां  का घर आज  दूर होते हुऐ ही याद आता है ||  बहुत मुश्किल से , मन को समझाता हूं,  वह दिन बीत गए, अब तुम सपनों में,  जी लिया करो , उन पलों को ,जो लौट के कभी,  न फिर आएंगे | आज भी, मां से किए,  वादे को निभाता हूं,  सब को खुश रखने की  अथक कोशिश में,  अपने आंसू पी जाता हूं,   Buy Now 👇👇   मां , आपका घर मे जो मन होता था | वो करते थे , खुशी से मां अपना  किताब पढते थे | अब बचपन गया | बद

4 दिन की जिंदगी है , बस कुछ तो अच्छा किजिऐ ,

                    कविता     न चादर बड़ी कीजिए ,     न  ख्वाहिशें दफन कीजिए ,     4 दिन की जिंदगी है ,      बस चैन  से बसर कीजिए,     ना परेशान किसी को कीजिए ,     ना हैराण किसी को कीजिए,       कोई लाख गलत भी बोले,       बस मुस्कुरा कर छोड़ छोड़ दीजिए ,      Buy Now         न  रूठा किसी से कीजिए ,       न झूठा वादा किसी से कीजिए ,      कुछ फुर्सत के पल निकालिए ,      कभी खुद से भी मिला कीजिए , pillow Shop now👇         कविता अच्छी लगी हो तो लाइक, शेयर & कामेंट  जरूर                            कीजिए || यहाँ पर Click करे और पढे ढेर सारी कविताऐ ! ✍🏻✍🏻✍🏻 अनिल हटरिया .... ..