"ना जाने कया बात है - मां के घर मे " बरसों बीत गए, उस घर से विदा हुए, बरसों बीत गए, नई दुनिया बसाएं हुए , पर ना जाने क्या बात है? शाम ढलते ही मन , उस घर पहुंच जाता है ! मां की आवाज सुनने को , मन आज भी तरसता है , Shop Now👇👇 महक मां के खाने की, आज भी दिल भर आती है , शाम होते ही याद आता है, घर में हंसी व शोर का होना , पापा का काम से, लौटकर आते ही , चाय का प्याला पीना, दिनभर का हाल सुनाना , आकर मुझे किताब पढवाना | समझ ना आऐ तो डाट सुनाना | भाई का खेलते कूदते आना , शाम होते याद आता है घर , जहां सदा मेहमानों का था, लगातार आना जाना| सदा घर पर बडे मेहमान आने पे कमरे मे छुप जाना | ना जाने वो मां का घर आज दूर होते हुऐ ही याद आता है || बहुत मुश्किल से , मन को समझाता हूं, वह दिन बीत गए, अब तुम सपनों में, जी लिया करो , उन पलों को ,जो लौट के कभी, न फिर आएंगे | आज भी, मां से किए, वादे को निभाता हूं, सब को खुश रखने की अथक कोशिश में, अपने आंसू पी जाता हूं, Buy Now...
Emotional Story with My Pain & Tear