मै और मेरा बचकना मम्मी के साथ और हमारी दुकान
आज की इस काहानी मे मेरी माँ और मेरे जिंदगी के बचपन की यादे के बारे मे बताऊगा ||
मेरा गाँव एक शहर से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है | मेरे घर मे मेरे भाई बहन और मम्मी -पापा है | हमारे घर मे एक छोटी सी दुकान है | दुकान का सामान लाने के लिऐ हम शहर जाते थे | वहा पर मे अपनी मम्मी के साथ जाता था |
मम्मी दुकान से सामान खरीदती थी और फिर हम बस स्टेण्ड की तरफ चल पडते थे | कभी कभी सामान जयादा होता तो रिकशा कर लेते थे | पूरा सामान रिकशा मे रख लेते थे और फिर मे और मम्मी रिकशा मे सवार हो जाते थे |
पन्द्रह रूपये मे रिकशा ड्राईवर बस के समीप उतार देता था | कभी कभी हम बस स्टैण्ड. के बाहर उतर जाते थे | मेरी मम्मी मुझे पुछती थी कि बेटा समोसा खाऐगा | तो मे भी बचपन मे हा कर देता था | मम्मी मुझे पर्स से दस रुपये निकालकर मुझे दे देती थी | और बोलती थी कि जल्दी खा के आ जाना |
मै तुम्हारा इंतजार कर रही हू | एक मां जो खुद अपने बेटे के लिऐ दस रूपये देती थी और खुद पांच रूपये की चाय तक भी ना पीती थी | फिर मै और मम्मी शहर से बस मे बैठकर गांव आ जाते थे | गांव मे बस से उतरकर एक बैग मुझे दे देती थी और खुद तीन बैग उठाती थी |
इस काहानी से ये ही कहुगा बचपन की यादे तो ठीक है | पर मां को आप याद करते हो या नही | जो मां आपके लिऐ समोसा खिलाती थी ओर. आज उसे दो रोटी देते भी हो या नही |
अत: मे ये ही कहूंगा मां मै चाहे कितना भी दुखी हो आपको दुख नही दुंगा | औय आपका प्यार बनाऐ रखूगा ||
सभी से निवेदन है कि शेयर करो या ना करो पर अपनी मां से ये ही बोलो बस. मे हू ना मां |
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आपका साथी
✍✍✍अनिल हटरिया
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