"ना जाने कया बात है - मां के घर मे "
बरसों बीत गए,
उस घर से विदा हुए,
बरसों बीत गए,
नई दुनिया बसाएं हुए ,
पर ना जाने क्या बात है?
शाम ढलते ही मन ,
उस घर पहुंच जाता है !
मां की आवाज सुनने को ,
मन आज भी तरसता है ,
महक मां के खाने की,
आज भी दिल भर आती है ,
शाम होते ही याद आता है,
घर में हंसी व शोर का होना ,
पापा का काम से, लौटकर आते ही ,
चाय का प्याला पीना,
दिनभर का हाल सुनाना ,
आकर मुझे किताब पढवाना |
समझ ना आऐ तो डाट सुनाना |
भाई का खेलते कूदते आना ,
शाम होते याद आता है घर ,
जहां सदा मेहमानों का था,
लगातार आना जाना|
सदा घर पर बडे मेहमान आने पे
कमरे मे छुप जाना |
ना जाने वो मां का घर आज
दूर होते हुऐ ही याद आता है ||
बहुत मुश्किल से ,
मन को समझाता हूं,
वह दिन बीत गए, अब तुम सपनों में,
जी लिया करो ,
उन पलों को ,जो लौट के कभी,
न फिर आएंगे |
आज भी, मां से किए,
वादे को निभाता हूं,
सब को खुश रखने की
अथक कोशिश में,
अपने आंसू पी जाता हूं,
मां , आपका घर मे जो मन होता था |
वो करते थे ,
खुशी से मां अपना
किताब पढते थे |
अब बचपन गया | बदल गया जीवन
पर आसमान तो वेसै ही नीला रह गया |
वो शाम की चाय खाट पर बैठकर,
सुबह की सैर पापा के साथ
सब खो दिया |
कोई कह दे मेरे भगवान से,
या तो शाम ना ढला करें ,
या मां के घर की,
याद ना आया करें
बहुत खुश है हम ,
अपनी इस दुनिया में ,
बिन मांगे सब पाया है ले,
लेकिन दिल से याद,
कौन निकाल पाया है?
मां के घर की यादें
कौन भुला पाए है?
मां के घर की यादे,
कौन भुला पाया है?
" मां "
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