वो गांव की गलियो वाला कल
कदम निकला घर से तो गली मे आ गये
गांव से निकले से हम शहर चले आऐ,
जब शहर से निकले तो परदेश चले आऐ,
परदेशो से निकले तो विदेश पहुँच गये ||
बाद में पता चला कि हम तो अपना घर छोड आऐ|
जहाँ बीता कल ,वो संसार छोड आऐ,
सुनते थे कहानियां ,सुनाते थे अपने गीत वो
गांव की गलियां छोड आऐ ,
हम तो अपना घर छोड आऐ |
आऐ कुछ कमाने तो कभी मन को भाने ,
पर सच में हम तो एक दिल छोड आऐ ,
गांव. मे वो अपना घर ,
गांव की वो गली
जिसमे खेलता था मेरा दोस्त
ओर वो सब बहने अब पता चला कि
हम तो अपना एक बहुत बडा संसार छोड आऐ |
आती है एक पल याद जब जाती है शाम ,
आती है एक पल याद जब जाती है शाम ,,थण थण
मन तो करती है तंग तो कभी मन को रहती है उलझन,
सदा सदा वो याद तो आती है ,
गलियो की मस्ती ,
वो जोडड वाले किनारे ,
भैसो के साथ पशुओ को खेतो में चराने ,
साईकिल की सवारी से खेतो की रखवाली ,
घर आते वकत साईकल के साथ दौड ,
यही रहते रहते करते थे ,
शाम के इंतजार वाला पल ,
गांव की गलियो में रहते थे
वो बडे बुढो के साथ रहते थे छोटे -2 पोता पोती ,
करते थे बस मन मौज वाली ,
कहानियां ,
गलियों में था वो स्कूल के छोटे -2 बच्चो का शौर ,
चिख मारते मारते भागते थे ,गलियो में वो टोल,
जब बजती थी स्कूल की घंटी टन टन टन ,
तब मन करता था ढन ढना ढन ,,
तब उठती थी गलियो में सिर्फ बच्चो की ही दौड ,
थी वो गलियो में रौनक ,
गांव की थी वो कहानियां ,
तब निकला था घर से कदम तो गांव को समेट लिया मैने |चलते चलते आगे आऐ ,तो शहर को पार कर गये |
आगे जाने का समय आया तो परदेश में कदम टिका लिया, ||
यही थी वो दौड जब गलियो में था ,
अपना एक पल ,
यही था वो एक गांव की गलियो वाला कल |||
यही था वो गांव की गलियों वाला कल |||
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