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अखबार वाले की काहानी (सोच बदलो और अपने आप पर कन्टृोल रखे )|

  अखबार वाले की काहानी (सोच बदलो और अपने आप पर कन्टृोल रखे   एक बार की बात है एक गरीब अखबार बेचने भेजने वाला हमारी गली से आया करता था | वह हर रोज सभी को अखबार देकर जाता  था |     उसी गली में एक खड़ूस आदमी  रहता था | और अखबार वाला रोज अखबार को धीरे से उसके घर घर पर रख देता था | फिर वहाँ उसको बदले मे पैसे  फैकं कर वापस कर देता था |      तभी एक दिन उसके साथी ने उससे पूछा तुम रोज इनको अखबार अच्छे से देख कर आते हो और वह तुझे रोज पैसे फेंक कर देता है |  तुम क्यों नहीं कह देते तब उसने बोला मैं तो हमेशा इसको सर कह कर बोलता हूं और इज्जत के साथ पेपर देता हूं पर हम क्या बोले कुछ लोग देश होते ही ऐसे हैं मैं अपने आप को शांत रखता हूं तो फिर तुम उनको अखबार फेंककर  क्यों नहीं बदला ले लेते |     तब उस अखबार वाले ने उस भैया को बोला कि मैं उसकी गलत व्यवहार से  क्यों अब अपना व्यवहार बदलू वह तो है ही घटिया किस्म का और अपना व्यवस्था | Buy Now    इसलिए रिमोट की तरह मत बनाओ मुझे अपने आप पर कंट्रोल है तो बात यह है कि अपने व्यवहार को अपनी अपनी तरह ही रखी ना किसी के रूखापन कीजिए  |   प्यार प्रेम से  मित्र करें

कया होती है बेटियाँ (घर की इज्जत)

  कया होती है बेटियाँ (घर की इज्जत) बेटी  जब - जब जन्म लेती है बेटी,  खुशियां साथ लाती है बेटी |                                  ईश्वर की सौगात ही बेटी ,                                 सुबह की पहली किरण ही है बेटी | तारों की शीतल छाया है बेटी , आंगन की चिड़िया है बेटी|                               त्याग और समर्पण सिखाती है बेटी ,                                नए नए रिश्ते बनाती है बेटी | जिस घर जाए ,उजाला लाती है बेटी , बार-बार याद आती है बेटी|   Buy Now                                   बेटी की कीमत उससे पूछो,                                 जिसके पास नहीं है बेटी| बेटी ही घर का मान है | बेटी ही घर की शान है |    बिना बेटी ये सभी सुनसान है | जिसके घर मे नही है बेटी उससे पूछो कया होती है बेटियाँ | जिसके घर मे नही है सजावट उससे पूछो कया होती है बेटियाँ || बेटियों की इज्जत करो और बेटियों का मान बढाऐ || कविता जरा सी भी अच्छी लगे तो शेयर व लेख लिखे | ज्यादा कहानियां देखने के लिऐ यहाँ पर Cli ck करे ✍🏻✍🏻✍🏻अनिल & मोनी हटरिया ..

"भगवान" भगवान कहां से हो| कहाँ गये भगवान 💞💌

  भगवान कहां से हो ? भगवान कहां से हो ? कपड़े हो गए छोटे ,शर्म कहां से हो | अनाज हो गया है रसायनिक, स्वाद कहां से हो | भोजन हो गया है डालडा का, ताकत कहां से हो | नेता हुआ कुर्सी का, देशमुखी कहां से हो|  फूल में प्लास्टिक के ,खुशबू कहां से हो | चेहरा हुआ मेकअप का, रूप कहां से हो | शिक्षक हुए ट्यूशन के ,विद्या कहां से हो| Buy Now .   प्रोग्राम हुए चैनल के ,संस्कार कहां से हो | पानी हुआ केमिकल का ,गंगाजल कहां से हो  संत हुए स्वार्थ के ,सत्संग कहां से हो|  भगत हुए स्वार्थ के, भगवान से भगवान कहां से हो| यहाँ Click करे और नई काहानियो को पढे ✍🏻✍🏻✍🏻 अनिल & मोनी हटरिया .. .

बेटी👸 और बहू👰🏻 में फर्क

बेटी👸 और बहू👰🏻 में फर्क  बेटी ससुराल में खुश😁 होती है तो खुशी😁 होती है | बहू ससुराल में खुश है तो खराब 😏लगता है|  दामाद बेटी की मदद करें तो अच्छा 😀लगता है | और बेटा बहू की मदद करें तो जोरू का गुलाम कहा जाए | जब खुद की बेटी बीमार होती है तो वह बीमारी लगती है और सारा घर सर पर उठा देते हैं | और जब यदि बहु बीमार हो तो नाटक लगता है|  बेटी को ससुराल में अकेला काम करना पड़े तो खराब 😥लगता है कि मेरी बेटी थक जाएगी और बहु सारा दिन 😥अकेले काम करें फिर भी बहू कामचोर कहलाए|  बेटी की सास और ननद काम ना करे तो गुस्सा😡 आता है |और जब अपने घर में वह बहू की मदद ना करें तो सही 😊लगता है |  Buy Now     बेटी यदि अपने ससुराल से घर आए तो अच्छा 😊लगता है और यदि बहू अपने घर अपने मां बाप से मिलने जाए तो बुरा 😏लगता है| बेटी की ससुराल वाले ताना मार तो गुस्सा 😡आता है और खुद की बहू के मायके वालों को ताना मारे तो सही लगता है|  बेटी को रानी👸 बनाकर रखने वाला ससुराल चाहिए और खुद को बहू कामवाली 😓चाहिए | लोग यह क्यों भूल जाते हैं कि वह भी किसी की बेटी है|  वह भी तो अपने माता-पिता ,भाई-बहन ,शहर सहेली आदि को छो

खुशी एक परिवार की

 खुशी एक परिवार की     एक परिवार में पति पत्नी व उसके मां-बाप रहते थे |हर समय सभी के मन में खुशी थी क्योंकि वहां सबको पता था कि यहां कुछ ना कुछ अलग होने वाला है|  कुछ दिनों बाद पत्नी ने  गर्भ धारण किया |फिर इस बात का जिक्र उसने अपने पति को बताया और वह फिर खुशी से झूमने लगी पति बड़ी खुशी से पत्नी का चुंममन लिया और बोला ओ माय डार्लिंग, यू आर सो स्वीट |उसके बाद वह इस खुशी को अपने मां बाप के साथ बाटी मां-बाप खुशी के मारे सुबकने लगे |अब तो हम भी अपने पोता पोती को खिलाएंगे|     कुछ महीने बीते| खुशी के साथ रोज यही बात कि मेरा बेटा -बेटी होगा | उससे मैं खिलाऊंगा, उसे मैं सुलालूंगा,उसे मैं दूध पिला लूंगा ,उसके साथ सैर करने निकलगे उसे मनपसंद खेल- खिलौने दिलाऊंगा| वहीं दूसरी ओर उसकी मम्मी मैं उसे नहलाऊंगी ,मस्त-मस्त कपड़े पहन आऊंगी घूमऊंगी ,चाऊमीन बर्गर खिलाऊंगी और उससे मैं वाटर पार्क और समुंदर के किनारे भी घूम आऊंगी |   वहीं दूसरी तरफ दादा-दादी बनाऊंगा, बनूंगी |उसे मैं स्कूल छोड़ कर आया करूंगी| उसका बैग में उठाकर ले जाऊंगी |वहीं दूसरी तरफ मैं उसको खिलाऊंगा |कहीं मेले में मनपसंद खिलौना लेकर आएंगे

भाई है तू मेरा ,मैं ही भाई तेरा||

 भाई है तू मेरा  भाई है तू मेरा ,मैं ही भाई तेरा||  जन्म के साथ साथ और मरण के साथ साथ भी भाई है तू मेरा | अपनी मंजिल पा ली है मैंने|  तुझे दुखी मैं ना देख पाऊंगा | इस संकट की घड़ी में मैं कभी तुझे अकेला ना कर पाऊंगा |बचपन में उस बड़े भाई का डर था | आज क्यों भाई को इतना अलग कर पाऊंगा |        बचपन का ये प्यार भाई- भाई.       साथ निभाऊंगा भाई मैं 1 दिन आऊंगा | सभी रिश्ते नाते को मैं मिला कर ले आऊंगा|  क्यों है दुनिया में खफा|  सब कुछ छोड़ मैं तेरे साथ चला आऊंगा  मेरी भी है मंजिल है मेरे भाई  नहीं तो मेरी भी इस दुनिया से अलग हो जाऊंगा | Buy Now    कह कह कर कितना समझाऊ भाई तुझे मैं  क्योंकि मैं भी अपनी मंजिल तेरे साथ लाऊंगा|  बचपन में हाथ पकड़ कर चलता था तू  अब क्या हाथ छोड़कर जाएगा | तू आज भी बड़ा है और मैं आज भी छोटा हूं | इस नाते को मैं आगे बढ़ाऊगा|  भाई मैं कभी भी ना अकेला छोड़ पाऊंगा  भाई है तू मेरा फिर भी अगले मोड़ पर खड़ा पाऊंगा  क्योंकि तू ही भाई मेरा फिर क्यों तुझे छोड़कर जाऊंगा| यदि काहानी अच्छी लगे तो शेयर & कामेंट करे | यहाँ Click करे और कहानियां पढे | .. ✍🏻✍🏻✍🏻 अनिल &

मां मुझे तेरी याद आती है |

 मां मुझे तेरी याद आती है | मां ,मुझे तेरी याद आती है|  पता नहीं मैं क्यों इतना तन्हा-तन्हा रहती हूं | क्यों डाल दिया मुझे इस फांसी के फंदे में | जहां मैं डर डर के रहती हूं | गरीब थी पर अमीरी देख ना  सकी | क्यों मैं इस घर को छोड़कर दूसरे के घर में रहती हूं|  समझ नहीं पाई ,मां मैं इन्हें  फिर भी क्यों मैं आपको बार-बार याद करती हूं| Buy Now    घर देखे थे मैंने ,पर क्यों एक लड़की  होकर मैंने इतने इल्जाम झेले थे | कभी किसी की ,कभी किसी की  क्या यही मेरी जिंदगी ने  द्वार खोले थे | अक्सर रो पड़ती हूं जब  उस दरवाजे पर जहां से मुझे तुम्हारी जैसी आवाज नहीं आती | करके दिखाएं, संभल कर दिखाएं यह ठिकाने | फिर भी मां ,मुझे तुम ही क्यों याद आती हो|  मां, मुझे तुम ही क्यों याद आती हो| यहाँ पर Click करे और ज्यादा कहानियां पढे ✍🏻✍🏻✍🏻अनिल हटरिया सहायक 💃❤