ननद के प्रति भाभी की बुरी सोच
नमस्कार दोस्तो ,
यह काहानी एक घटित घटना पर आधारित है |
एक समय की बात है |जब एक घर मे मां के एक बेटा व एक बेटी हुई|
मां बहुत खुश थी | कुछ समय गुजरा| परिवार आगे बढता रहा | बडे मजे मे घर चल रहा था |ना किसी की टेंशन और ना किसी को टेंशन देने की |
कुछ साल गुजरे| बेटा बेटी बडे हो गये |अब मां-बाप को सोच थी जल्दी से इनकी शादी कर दे !
बहन की भी ये सोच थी कि मे देख कर आऊगी अपने भाई के लिऐ भाभी | ऐसी देखूगी भाभी को ,अच्छी देखूगी |
अब वो समय भी आ गया बहन देखने गई | बहन ने भाभी को पसंद किया की भाभी मेरी अच्छी है |
कुछ समय बाद बहन का रिश्ता भी तय हो गया |दो तीन महीने बाद अब शादी तय हो गई |
शादी के बाद कौन आश लगाये बैठा था | की अपने मां बाप के घर जाऊगी घूमने पर नही आ पाई | अब समय और गुजरा रक्षाबंधन का त्यौहार नजदीक आ गया |
बहन ने भाई को फोन करके बोला कि भाई मे अब की बार नही आ पाऊगी राखी पर और भाभी को भी बता देना |
समय गुजरा ,रक्षाबंधन का त्यौहार आया |नन्द ने भाभी को फोन किया भाभी कैसी हो |भाभी ने बोला अच्छी हूऔर आप ,वो बोली मे भी अच्छी हूं
फिर नन्द ने बोला ,भाभी मैने राखी भेजी थी |कया आपको मिल गई |
तब भाभी ने बोला नही ,दीदी नही आई |
फिर बोला ठीक है भाभी ,
अगले दिन भाभी ने ननद के पास फोन किया और बोला दीदी राखी भेजी थी वो मिल गई ,बहुत अच्छी थी |धन्यवाद दीदी ,बहुत सुन्दर राखी ,
इतना कहते ही ,ननद ने बोला ठीक है भाभी ओके ,फिर फोन को रख दिया |
और अपने आप मे ही रोने लगी कि मै तो भेज ही नही पाई थी राखी और और. भाभी को मिल भी गई |
ये कैसी ,जहाँ से भाभी बातो को इतना बडा चढा कर और झूठ बोल रही है | मै कैसे विशवास कर लू भाभी पर जिसने मेरी राखी को मजाक मे ले लिया |
बहन भाई का एक पवित्र रिश्ता है | जहाँ भाभी को भी निभाना पडता है |
एक भाई के साथ भाभी को भी एक पवित्र धागा बाधती है|
पर ऐसे मे वो कैसा रिश्ता जिसमे भाभी ,ननद को घर मे देखकर खुश ना हो |
और एक दिन के लिए मेहमान. बन कर आऐ |वहाँ उसको अपने ही घर मे घूटन हो |
यदि आप भी किसी की भाभी हो तो थोडा समझ लो |
और भाई हो तो शेयर कर दो|
बहन पर खर्च और बैटी पर खर्च किये से फायदा होता है |बहन बेटी हमारे से ये चंद पैसा लेने नही आती वो ये दुआऐ देने आती है कि मेरा भाई अच्छा है हमारा परिवार खुश है
वो भाई -भाभी ,मां -बाप को को मोहब्बत भरी नजरो से देखने आती है |
पर याद रखना आज तो नही ये रिवाज एक समय था जब पता चलता था कि बहन आने वाली है सभी भाई बस स्टेण्ड
एक घंटा पहले ही पहुच. जाते थे |और बसो की तरफ देखते थे की बहन इस बस से आऐगी या अगली बस से,
बस स्टेण्ड पर ही बैग उठाने के प्रति प्यारा सा इगडा होता था कि मै बैग उठाऊगा एक बोलता था की नही मै उठाऊगा |फिर बहन को घर पर लाते थे |
पर आज जैसे ही पता चले तो घर मे सन्नाटा सा छा जाता है |
कयू भाई सही बात है ना कम से कम बहन को घर पर नही ला सकते तो घर पर आऐ की इज्जत करो ||
आंखो मे शर्म है तो समझ मे आ गई होगी ||
बहनो को घर मे मान व अच्छे से बात करो इसी मे ही अपने मेहमान खुश है ||
दान देने से घर मे पैसे नही घटता |
और घर पर आऐ हुऐ मेहमान को इज्जत देने से
सम्मान. नही घटता ||
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