“हर उस #बेटे को समर्पित जो घर से दूर है चाहे वो होस्टल में हो या नौकरी के लिए दूर शहर में..........
बेटियाँ ही नही साहब, बेटे घर छोड़ जाते हैं...
बेटे भी घर छोड़ जाते हैं...
जो तकिये के बिना कहीं…भी सोने से कतराते थे…
आकर कोई देखे तो वो…कहीं भी अब सो जाते हैं…
खाने में सो नखरे वाले..अब कुछ भी खा लेते हैं…
अपने रूम में किसी को…भी नहीं आने देने वाले…
अब एक बिस्तर पर सबके…साथ एडजस्ट हो जाते हैं…
बेटे भी घर छोड़ जाते हैं...
घर को मिस करते हैं लेकिन…कहते हैं ‘बिल्कुल ठीक हूँ’…
सौ-सौ ख्वाहिश रखने वाले…अब कहते हैं ‘कुछ नहीं चाहिए’…
पैसे कमाने की जरूरत में…वो घर से अजनबी बन जाते हैं
लड़के भी घर छोड़ जाते हैं।
बना बनाया खाने वाले अब वो खाना खुद बनाते है,
माँ-बहन-बीवी का बनाया अब वो कहाँ खा पाते है।
कभी थके-हारे भूखे भी सो जाते हैं।
लड़के भी घर छोड़ जाते है।
मोहल्ले की गलियां, जाने-पहचाने रास्ते,
जहाँ दौड़ा करते थे अपनों के वास्ते,,,
माँ बाप यार दोस्त सब पीछे छूट जाते हैं
तन्हाई में करके याद, लड़के भी आँसू बहाते है
लड़के भी घर छोड़ जाते हैं|
कभी बाप की डाट न खाने वाले ,
आज किसी की भी डाट खा लाते हे ,
कभी नही कहते थे के मै कैसे कमाऊ ,
आज वो चुपचाप कमाने के लिऐ अपना खाना टिफिन मे पैक कर ले जाते है |
कभी किसी की ना सुनने वाले आज घर चलाने के लिऐ हाथ जोडकर अपना रोजगार चालू कर लेते है |
बेटे भी घर छोड जाते है |
जब पैसे मां बाप के दिऐ हुऐ तब मस्ती से पेट भर लेते थे |
आज लाख कमाने पर भी दो वक्त की रोटी के लिऐ सोचते है |
बेटे भी घर छोड जाते है ,
घर दूर लगता था स्कूल से
आज अपने शहर छोड के,
दूसरो के शहर भी कमाने चले जाते है |
कभी पढते थे पास के स्कूल मे भी तो रास्ते लंबे लगते थे ||
आज दूर जा जाकर बच्चो को पढाना भी घर के पास लगता है |
तो बेटे भी घर छोड जाते है |
अपनी मुसीबत को त्याग कर अब अपने आप ही चल पडते है |
नई नवेली दुल्हन, जान से प्यारे बहिन- भाई,
छोटे-छोटे बच्चे, चाचा-चाची, ताऊ-ताई ,
सब छुड़ा देती है साहब, ये रोटी और कमाई।
मत पूछो इनका दर्द वो कैसे छुपाते हैं,
बेटियाँ ही नही साहब, बेटे घर छोड़ जाते हैं...
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