मै भी अपना घर सजाऊगा |
मै भी अपना घर बनाऊगा |
इस भीगी राह को भी अपनाऊगा |
जुर्म 36 हुऐ मुझपे पर तुझे एक बात ही सिखाऊगा |
मै अपना घर सजाऊगा |
सपने आंखो में नही ,दिलो में है |
दिल अपनो से है गैरो से नही ,
आदत बुरी है कमाने की ,
कमाने के बहाने से घर बनाऐगे |
घर में अपना कमरा बनाऐगे |
वहाँ अपने कर्मो से अपना मेल मिलाऐगे |
जहाँ घर में खुशी होगी ,वहां से हम अपना दीप जलाऐगे |
एक ही किताब पढेगे जहाँ
दूसरे के साथ ना कभी धोखा होगा |
ना कभी किसी का अपमान ,
बस अपना एक घर बनाऐगे |
जहाँ अंधेरा होगा वहाँ अपना हम अपना प्रकाश लगाऐगे |
मतलबी लोगो को ठिकाने लगाऐगे |
बस अपना घर सजाऐगे |
औकात ना दिखानी किसी को , बस
अपनापन ना अपनाऐगे |
घर की चार दिवारी में वो प्यारो का फूल खिलाऐगे |
फूलों की खुशबू सै इस घर को महकाऐगे |
हम भी अपना घर सजाऐगे |
कभी लोग सोचते थे कि यै तो अंधा है
हम उनको अपनी आंखो की पटटी खोल के बताऐगे |
हम भी अपना घर सजाऐगे |
हम भी अपने घर को खुशबू से महाकाऐगे ||
कर्मो की देन है जिदंगी ,
अपने से दोस्ती ,बाहर वालो से प्यार रखेगे |
हम भी अपना घर सजाऐगे |
हम भी अपना घर सजाऐगे ||
जहाँ बात ना बने वहाँ, हम ईशवर के सामने
सिर झुकाऐगे |
जब मिले इस भगवान का साथ,
तब भी इस ईशवर की बाहो को हम ना सुनसान बनाऐगे |
हम भी ऐसा घर बनाऐगे जहाँ ,
भगवान का रूप मां -बाप को घर में ही नही
खुद उनके नाम का एक घर बनाऐगे ,
घर मंदिर को भी सजाऐगे ,हम अपना एक घर बनाऐगे |
हम भी अपना घर बनाऐगे ,
हम भी अपना घर को सजॎऐगे |||
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फौजी की प्रेम काहानी अपने परिवार की
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