बदलता है रूख ,
सदैव एक जैसा नही नही होता ,
कल जैसा दिन अगला नही होता है |
सच्चे होने का नाटक मत करो ,
सच तो दिख जाती है ,
झूठे आदमी की जुबान बिक जाती है |
कहते है बदल रहा है रूख ,
बदल देगे ये कायनात ,
सच्चे रहने नाटक मत करो उनको ,
जिनहे तुम्हारी सच का पता हो ,
सब बदल जाता है |
आदमी रूख मोड लेता है ||
कायनात बदलने की नही ,
बस सच्चा आदमी अपना हक बदल लेता है |
कुछ दिन रहता है |
वो नाटक ,खत्म हो जाता है |
सब खेल जब आदमी अलग हो जाता है |
नींद में तो आऐगी ही कहाँ ,
दिनो में ही अलग रख देते है ,
कभी कभी तो अपनी आँखो को ,
बंद कर लेता है ||
सच्ची तो कया बताऊ ,
अब में वो रूख बदल लेता हूँ ||
किस्मत मेरे भोले ने बहुत अच्छी लिखी है ||
कर्म करना मेरे परिवार ने सिखाया है |
नेक काम किये है ,
अपनेो से कभी भैर नही किया है |
समझाकर ये कदम मेरे मां -बाप ने घर से
डयूटी देने भेजा है ||
भगवान के अवतार ने हमें सब दवा
देकर यहाँ मौज करने भेजा है ||
बदलता है रूख ,
सदैव एक जैसा नही नही होता ,
आज मेंरा दिन अच्छा नही तो ये नही ,
कल का दिन भी अच्छा नही होगा ||
कभी आती गर्मी ,
तो कभी सर्दी ,
कभी कभी आ जाते है ,
गर्मी के तूफान ,
तौ कभी कभी आ जाती है |
ये बरसात वाली फुहार ,
बदलते है दिन कभी कभी बदल जाते है
ये राते ,
रूख बदल जाता है तो कभी
दुख बदल जाता है ,
मेहनत कभी सही लगती है तो
कभी गलत ,
सब आदमी की नियत बदल जाती हैं |
सच बताऊ तो,
बदलता है रूख , पर ये
सदैव एक जैसा नही नही होता है |
बदलता है रूख , पर ये
सदैव एक जैसा नही नही होता है |
...
..
.
टिप्पणियाँ