मजदूर हरि की कहानी !!
ये काहानी आपको रुला देगी
प्रणाम सभी को ,
नमस्कार दोस्तों मैं अनिल हटरिया आज आपके लिए नई कहानी लेकर आया हूँ | यह कहानी है हरि नाम के एक मजदूर की, हरि की उम्र तकरीबन 7 साल थी |
हरि रामपुर नामक के गांव में रहता था| रामपुर उस समय काफी खुशहाल गावँ था| गावँ के लोग बड़े खुशमिजाज थे| हर कोई अपनी मजदूरी, खेती, व्यापार इन्हीं चीजों में व्यस्त रहता था| हर साल गांव में मेला होता था, नए-नए त्योहार मनाए जाते थे| करीबन 10 साल की उम्र में हरि के माता-पिता उसे छोड़ स्वर्ग सिधार गए थे, तब से हरि अकेला ही जीता था| जहां मिले वहां खाता था, जहां मिले वहां सो जाता था|
हरि के पिता ने गांव के साहूकार से काफी कर्ज़ लेकर रखा था| वह कर्जा चुकाने के लिए साहूकार ने हरि को अपने यहां काम पर रख लिया था, हरि के पास ना अपनी खेती थी ना कोई व्यापार था| हरि साहूकार के नीचे काम करते-करते न जाने कब बड़ा हो गया, अब हरि की उम्र तकरीबन 20 साल थी | पूरी जिंदगी हरि ने अकेले काटी थी| अब उसका मन शादी कर घर बसाने का था| पर मुश्किल तो यह थी हरि जैसे गरीब मजदूर को अपनी लड़की विवाह के लिए कौन देता| हरि ने लड़की ढूंढने की काफी कोशिश की पर हरि से शादी रचाने के लिए कोई भी तैयार नहीं था| दूसरी तरफ हरी की जिंदगी मानो जैसे साहूकार के पास गिरवी रखी थी| दिन बीतते रहे हरि का शादी का ख्याल दिमाग से न जाने कब निकल गया| अब तो बस उसकी मजदूरी में ही हरि को अपना जीवन व्यतीत करना था|
अचानक एक दिन की बात थी, जब हरि रास्ते से जंगलों की ओर गुजर रहा था | रास्ते में उसे एक बुरे हाल मैं औरत नजर आयी, जो कि काफी फूट-फूट कर रो रही थी| हरि से रहा ना गया|
हरि उस औरत की और जा कर पूछा, ओ बहन आप क्यों रो रहे हो?, औरतों ने कोई जवाब नहीं दिया और जोर जोर से रोने लगी, और वहां से उठकर दूसरी तरफ चली गई| फिर यह देखकर हरि वहां से जंगल की ओर चला गया|
दूसरे दिन फिर साहूकार ने हरि को जंगल से लकड़ी लाने का काम दिया था| उसी प्रकार उसी रास्ते से हरि गुजर रहा था की अचानक फिर हरी ने उस औरत को एक जंगल के कोने में रोते हुए फिर से देखा, इस बार हरि ने ठान लिया कि मैं इस औरत की मजबूरी का कारण पूछ कर ही रहूंगा| हरि औरत के पास गया और पूछने लगा ओ बहना मैं तुम्हारे भाई जैसा हूँ, आप मुझे अपनी मजबूरी बता सकते हो कृपया करें और मुझे अपनी मजबूरी बताएं| मुझे आपका हाल देखा नहीं जा रहा, औरत धीमी आवाज में बोली, आप यहां से चले जाइए, वरना आप भी मेरी बीमारी के शिकार हो जाओगे| मुझे छूत की बीमारी है, आप कृपया करके यहां से चले जाइए मुझे अकेला छोड़ दीजिए| काफी पूछताछ के बाद औरत ने हरि को बता ही दिया कि उसके घरवालों ने, उसके पति ने इस बीमारी के कारण उसे छोड़ दिया है, और उससे अपना नाता तोड़ दिया है| तब से मैं यही जंगलों में भटक रही हूँ, और अपनी मृत्यु का इंतजार कर रही हूँ | यह सब जानने के बाद हरि ने उस औरत के लिए खाने का इंतजाम किया। बारिश के दिन थे हरि ने जंगल में ही उस औरत के लिए एक कुटिया बनाई, हरी रोज उसके लिए खाना ले जाता और बीमारी से ठीक होने के लिए कुछ दवाई भी ले जाता था|
दिन बीत रहे थे हरि रोजाना की तरह खाना ले जाता, दवाई ले जाता । 1 दिन साहूकार ने रात के समय हरि को जंगल जाते हुए देखा| साहूकार ने सोचा मैंने तो हरि को किसी प्रकार का काम नहीं दिया फिर वह जंगल क्यों जा रहा है| साहूकार ने अपने कुछ लोगों को हरि के पीछे भेज दिया। साहूकार के लोग हरि का पीछा करते-करते जंगल की ओर पहुंच गये| उन्होंने देखा कि हरी जंगल में कुटिया के अंदर घुस गया नजदीक से सुनने के बाद लोगों को अंदर से एक औरत की आवाज आ रही थी, यह सारी बात साहूकार के लोगों ने शीघ्र ही साहूकार को बता दी| साहूकार सोच में पड़ गया आखिर मामला क्या है, दूसरे दिन साहूकार ने हरिको खेतों में काम करने भेज दिया और उसके लोग जंगल में कुटिया के पास पहुंच गए| औरत को उन्होंने बीमार देखा और जानकारी के बाद पता चला कि यहां भयंकर रोग से संक्रमित हैं| साहूकार ने सरपंच से जाकर मुलाकात की और पूरे गांव में एक ही बवाल मचा दिया कि उस बीमार औरत से हरि के अनैतिक संबंध है और शादी ना होने के कारण उस औरत के साथ जंगल में रहता है| सारे गाँववाले रोग से डरने लगे पर यह बीमारी गाँव में ना पहुचे यह सोचते हुवे गांव के लोगों ने क्रूर नीति के साथ, उस औरत को जिंदा ही जला दिया और हरि को हमेशा के लिए गावँ से बाहर कर दिया| यह बात तूफान जैसी हर गावँ में फैल चुकी थी| हरि को कोई गावँ जगह देने की लिए तैयार नहीं था, हरी अब थक चुका था और उसने अब सोचा की जाये तो जाये कहां!
फिर वहां जंगल का रास्ता ढूंढता है और जंगल के रास्ते से होते हुए एक पहाड़ पर जाकर पहुंच जाता है| जहां पर हनुमान जी की मूर्ति थी |वहीं पर बसेरा बना लेता है| वहां पर उसे खाने की बहुत दिक्कत होती थी, जिससे वहां के पेड़ पौधे खाकर अपना गुजारा करता था | कुछ दिनों तक यही सिलसिला चलता रहा| उसने मंदिर के चारों ओर साफ सफाई करके मंदिर को अच्छा बना दिया था | उसे लगा कि अब यहां पर घंटी की कमी है| वह रात में अपने गावँ में जाकर गावँ के मंदिर से पूरे घंटिया चोर कर ले आता है और पहाड़ पर मंदिर के चारों ओर घंटिया लगा देता है| जब सुबह गावँ वाले मंदिर में पूजा करने जाते हैं तो उन्हें दिखता है कि घंटियां पूरी गायब हो चुकी है| सभी लोग आश्चर्यचकित हो जाते हैं, अगले ही दिन रात में तूफान आता है और बहुत लोगों को गावँ में घंटियो की आवाज़ सुनाई आती है, जो कि उस पहाड़ से आती है जहां पर हरि ने अपना बसेरा बनाया हुआ था| लोगों का ऐसा एहसास हुआ कि पहाड़ पर कुछ है| गावँ के लोग यह सुनिश्चित करते हैं कि हमें पहाड़ पर जाकर देखना चाहिए कि घंटियो की आवाज कहां से आ रही है| लोग पहाड़ पर जाते है सरपंच के साथ| लोगों को पहाड़ पर आते देख हरि पहाड़ों में बनी गुफाओं में छुप जाता है और वह भयभीत हो जाता कि कहीं उसे किसी ने देख तो नहीं लिया और गावँ वाले उसे पकड़ने तो नहीं आ रहे हैं, जब गावँवाले वहां पर पहुंचते हैं तो पाते हैं कि हनुमान जी की मूर्ति स्थापित है, घंटिया चारों तरफ लगी हुई है लोग उसे चमत्कार समझ बैठते हैं और सब वहां पर सब अपना सिर झुका कर भगवान के समक्ष नतमस्तक होते हैं, जब हरि देखता है यह तो वह भी चकित हो जाता है की यहाँ तो कुछ और ही हो रहा है|
जब लोगों को अपने मंदिर की घंटियां यहां पर मूर्ति के पास स्थापित देख लोगों को यह लगा कि यहां पर चमत्कार हुआ है, तो लोग वहां पर मंदिर बनवा देते हैं, रोड बनवा देते हैं |जिसे देख हरि भी आश्चर्य में पड़ जाता है और दूसरे गावँ के लोगों को यह पता चलता है तो कई गावँवाले वहां पर पूजा अर्चना के लिए आते हैं और दान चढ़ावा चढ़ाते हैं यह सब देखकर हरि खुश होता है और उसकी दिनचर्या और अच्छी हो जाती है क्योंकि मंदिर के पास जो भी चढ़ावा चढ़ता है| उसे खाकर वहां अपनी जिंदगी का गुजारा करता है और वहीं पर अपना बसेरा बना कर रहने लग जाता है|
इसका लिखने का तात्पर्य है कि मानवता जीवन का आधार है, उसे अंधश्रद्धा या कूटनीति से नष्ट ना करें। अगर सृष्टि ही किसी को जिंदा रखना चाहे तो उसे हम और आप मिटाने वाले कौन हैं|
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________✍✍✍ अनिल हटरिया______ ____
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हरि रामपुर नामक के गांव में रहता था| रामपुर उस समय काफी खुशहाल गावँ था| गावँ के लोग बड़े खुशमिजाज थे| हर कोई अपनी मजदूरी, खेती, व्यापार इन्हीं चीजों में व्यस्त रहता था| हर साल गांव में मेला होता था, नए-नए त्योहार मनाए जाते थे| करीबन 10 साल की उम्र में हरि के माता-पिता उसे छोड़ स्वर्ग सिधार गए थे, तब से हरि अकेला ही जीता था| जहां मिले वहां खाता था, जहां मिले वहां सो जाता था|
अचानक एक दिन की बात थी, जब हरि रास्ते से जंगलों की ओर गुजर रहा था | रास्ते में उसे एक बुरे हाल मैं औरत नजर आयी, जो कि काफी फूट-फूट कर रो रही थी| हरि से रहा ना गया|
हरि उस औरत की और जा कर पूछा, ओ बहन आप क्यों रो रहे हो?, औरतों ने कोई जवाब नहीं दिया और जोर जोर से रोने लगी, और वहां से उठकर दूसरी तरफ चली गई| फिर यह देखकर हरि वहां से जंगल की ओर चला गया|
दूसरे दिन फिर साहूकार ने हरि को जंगल से लकड़ी लाने का काम दिया था| उसी प्रकार उसी रास्ते से हरि गुजर रहा था की अचानक फिर हरी ने उस औरत को एक जंगल के कोने में रोते हुए फिर से देखा, इस बार हरि ने ठान लिया कि मैं इस औरत की मजबूरी का कारण पूछ कर ही रहूंगा| हरि औरत के पास गया और पूछने लगा ओ बहना मैं तुम्हारे भाई जैसा हूँ, आप मुझे अपनी मजबूरी बता सकते हो कृपया करें और मुझे अपनी मजबूरी बताएं| मुझे आपका हाल देखा नहीं जा रहा, औरत धीमी आवाज में बोली, आप यहां से चले जाइए, वरना आप भी मेरी बीमारी के शिकार हो जाओगे| मुझे छूत की बीमारी है, आप कृपया करके यहां से चले जाइए मुझे अकेला छोड़ दीजिए| काफी पूछताछ के बाद औरत ने हरि को बता ही दिया कि उसके घरवालों ने, उसके पति ने इस बीमारी के कारण उसे छोड़ दिया है, और उससे अपना नाता तोड़ दिया है| तब से मैं यही जंगलों में भटक रही हूँ, और अपनी मृत्यु का इंतजार कर रही हूँ | यह सब जानने के बाद हरि ने उस औरत के लिए खाने का इंतजाम किया। बारिश के दिन थे हरि ने जंगल में ही उस औरत के लिए एक कुटिया बनाई, हरी रोज उसके लिए खाना ले जाता और बीमारी से ठीक होने के लिए कुछ दवाई भी ले जाता था|
दिन बीत रहे थे हरि रोजाना की तरह खाना ले जाता, दवाई ले जाता । 1 दिन साहूकार ने रात के समय हरि को जंगल जाते हुए देखा| साहूकार ने सोचा मैंने तो हरि को किसी प्रकार का काम नहीं दिया फिर वह जंगल क्यों जा रहा है| साहूकार ने अपने कुछ लोगों को हरि के पीछे भेज दिया। साहूकार के लोग हरि का पीछा करते-करते जंगल की ओर पहुंच गये| उन्होंने देखा कि हरी जंगल में कुटिया के अंदर घुस गया नजदीक से सुनने के बाद लोगों को अंदर से एक औरत की आवाज आ रही थी, यह सारी बात साहूकार के लोगों ने शीघ्र ही साहूकार को बता दी| साहूकार सोच में पड़ गया आखिर मामला क्या है, दूसरे दिन साहूकार ने हरिको खेतों में काम करने भेज दिया और उसके लोग जंगल में कुटिया के पास पहुंच गए| औरत को उन्होंने बीमार देखा और जानकारी के बाद पता चला कि यहां भयंकर रोग से संक्रमित हैं| साहूकार ने सरपंच से जाकर मुलाकात की और पूरे गांव में एक ही बवाल मचा दिया कि उस बीमार औरत से हरि के अनैतिक संबंध है और शादी ना होने के कारण उस औरत के साथ जंगल में रहता है| सारे गाँववाले रोग से डरने लगे पर यह बीमारी गाँव में ना पहुचे यह सोचते हुवे गांव के लोगों ने क्रूर नीति के साथ, उस औरत को जिंदा ही जला दिया और हरि को हमेशा के लिए गावँ से बाहर कर दिया| यह बात तूफान जैसी हर गावँ में फैल चुकी थी| हरि को कोई गावँ जगह देने की लिए तैयार नहीं था, हरी अब थक चुका था और उसने अब सोचा की जाये तो जाये कहां!
फिर वहां जंगल का रास्ता ढूंढता है और जंगल के रास्ते से होते हुए एक पहाड़ पर जाकर पहुंच जाता है| जहां पर हनुमान जी की मूर्ति थी |वहीं पर बसेरा बना लेता है| वहां पर उसे खाने की बहुत दिक्कत होती थी, जिससे वहां के पेड़ पौधे खाकर अपना गुजारा करता था | कुछ दिनों तक यही सिलसिला चलता रहा| उसने मंदिर के चारों ओर साफ सफाई करके मंदिर को अच्छा बना दिया था | उसे लगा कि अब यहां पर घंटी की कमी है| वह रात में अपने गावँ में जाकर गावँ के मंदिर से पूरे घंटिया चोर कर ले आता है और पहाड़ पर मंदिर के चारों ओर घंटिया लगा देता है| जब सुबह गावँ वाले मंदिर में पूजा करने जाते हैं तो उन्हें दिखता है कि घंटियां पूरी गायब हो चुकी है| सभी लोग आश्चर्यचकित हो जाते हैं, अगले ही दिन रात में तूफान आता है और बहुत लोगों को गावँ में घंटियो की आवाज़ सुनाई आती है, जो कि उस पहाड़ से आती है जहां पर हरि ने अपना बसेरा बनाया हुआ था| लोगों का ऐसा एहसास हुआ कि पहाड़ पर कुछ है| गावँ के लोग यह सुनिश्चित करते हैं कि हमें पहाड़ पर जाकर देखना चाहिए कि घंटियो की आवाज कहां से आ रही है| लोग पहाड़ पर जाते है सरपंच के साथ| लोगों को पहाड़ पर आते देख हरि पहाड़ों में बनी गुफाओं में छुप जाता है और वह भयभीत हो जाता कि कहीं उसे किसी ने देख तो नहीं लिया और गावँ वाले उसे पकड़ने तो नहीं आ रहे हैं, जब गावँवाले वहां पर पहुंचते हैं तो पाते हैं कि हनुमान जी की मूर्ति स्थापित है, घंटिया चारों तरफ लगी हुई है लोग उसे चमत्कार समझ बैठते हैं और सब वहां पर सब अपना सिर झुका कर भगवान के समक्ष नतमस्तक होते हैं, जब हरि देखता है यह तो वह भी चकित हो जाता है की यहाँ तो कुछ और ही हो रहा है|
जब लोगों को अपने मंदिर की घंटियां यहां पर मूर्ति के पास स्थापित देख लोगों को यह लगा कि यहां पर चमत्कार हुआ है, तो लोग वहां पर मंदिर बनवा देते हैं, रोड बनवा देते हैं |जिसे देख हरि भी आश्चर्य में पड़ जाता है और दूसरे गावँ के लोगों को यह पता चलता है तो कई गावँवाले वहां पर पूजा अर्चना के लिए आते हैं और दान चढ़ावा चढ़ाते हैं यह सब देखकर हरि खुश होता है और उसकी दिनचर्या और अच्छी हो जाती है क्योंकि मंदिर के पास जो भी चढ़ावा चढ़ता है| उसे खाकर वहां अपनी जिंदगी का गुजारा करता है और वहीं पर अपना बसेरा बना कर रहने लग जाता है|
इसका लिखने का तात्पर्य है कि मानवता जीवन का आधार है, उसे अंधश्रद्धा या कूटनीति से नष्ट ना करें। अगर सृष्टि ही किसी को जिंदा रखना चाहे तो उसे हम और आप मिटाने वाले कौन हैं|
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