जिंदगी की रफतार
रफ्तार की दौड फिर से आ गई ,
बीते दिनो को छोडके अब गाडी की रेस
अपने पंजो के नीचे आ गई |
मर के जिंदा हूआ ,
अब जिंदगी की नई. राह आ गई |
13 बीमारियो से बचकर
जिंदगी की रफतार अपने पंजो के नीचे आ गई |
हर रोड पर मोड ही मोड
वही जिंदगी से गिराने की राह आ गई थी |
अब रफतार भरी जिंदगी फिर से आ गई है |
गिराने वाले तो गिरे हुऐ रह गये है |
बाजी मारने के चककर में लोगो के तलवे चाटते फिर गये |
जिंदगी की रफतार में कुछ गैर लोग जिंदगी से फिसल गये |
मतलबी अपना मकसद में नाकाम रह गये |
युद्ध तो लाख किये पर तीर चलाने की बजाये
कमान उठाना तो भूल गये ,
सागर की लहर में नही वो तो घर
बैठे बेठे जुबान चलना सीख गये |
लोगो को गंदा बताकर ,अपने
आप को तो धोना भूल गये ,
जगह बदली ,पर जगह की दिमाग का कचरा
तो निकालना भुल गये ,
सिखा तो मेने जिंदगी के नये नये आयाम ,
पर टांग मुडने के बाद भी ये खेल छोडना
ना भुल पाया ,
कमर में लगा दर्द ,
फिर भी कमाने के लिऐ लाईन से चल दिये ,
आंख में हुई बहुत दिककत ,
फिर भी चशमा पहनना भूल गये ,
क ई क ई बार तो सुबह का खाना भूल गया |
30 रूपये की भी रोटी खाके ,
दोपहर का पेट भरा ,
फिर भी समय पर जाकर ,
नौकरी का काम किया |
सिर दर्द में भी घर का काम किया ,
रफतार की जिंदगी में
दवा लेना भी भूल गये ,
खून बहता रहा ,पर फिर भी
आगे बढना रूके नही ,
घूटने में भी दर्द आया ,
पर फिर भी रफतार की घडी ने आराम ना लिया|
हाथ - पैरो में दर्द , हुआ ,
फिर भी ना ये सफर कम हूआ |
रूक रूक के सांस आया |
फिर भी ये जीने - मरने की आश ना छोडी |
हर तरह की खाज बढी पर खुजली ने ना
रात छोडी ,कभी कभी तो इसने खासते खासते
गले की आवाज ना छोडी ,|
वाणी की बोली में ना मैने कोई राख घोली ,
सफर के रास्ते से ना मैने कोई रफतार छोडी |
हर जगह की इस मुशिकल सै मैने ना ,
किसी तरह की आश छोडी ,
रफतार पकडने की दौड आई फिर भी ना मैने
कोई आराम मांगी |
हर जगह से छाया था अंधेरा ,
फिर भी ना मैने रात छोडी ,
अब सफर की रफतार में आया एक
नया मोड ,
अब फिर से एक रफतार पकडी |
आ गया मेरा जीवनसाथी भी ,
जिसने गिरते हुऐ भी हाथ ना छोडी ,
सब कर्म सच्चा व सच्चाई से निभाया ||
तब जाकर जिंदगी की रफ्तार वापस आई |
रफ्तार की दौड फिर से आ गई ,
बीते दिनो को छोडके अब गाडी रेस
अपने पंजो के नीचे आ गई |
मर के जिंदा हूआ ,
अब जिंदगी की नई. राह आ गई |
Shopping भी करे यहाँ से Click करके
...
..
.
टिप्पणियाँ